॥ श्री हनुमानाष्टक प्रारम्भ ॥
बन्दौं हनुमन्त जेहि ज्ञान बल अन्त नहिं,
रुद्र अवतार सरदार बीर वंका है।
पवन के पूत मजबूत हर बातन में,
राम जी के दूत जिन्ह फूँक दीन्ह लंका है॥
भूत प्रेत भंजन सुर सन्त भक्त रंजन कपि,
बाजै बल नाम ज्ञान तीन लोक डंका है।
ऐसे हनुमन्त सन्त दीजै भगवन्त भक्ति,
नागा बलवन्त कीश हरन हार शंका है॥