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॥ श्री रामायण व गीता जी की प्रार्थना ॥

जारी........

अनहद बाजि रहा सुधि कीजै, अमृत गगन से झरता पीजै, सुर मुनि के

उर में उर दीजै अ ह ह ह ह ह ह ह ह ह ह ह ह ह ह ह।३।

चमकै तेज रूप लखि लीजै हर दम टरै न सन्मुख कीजै अंधे कहैं

जियति तरि लीजै अ ह ह ह ह ह ह ह ह ह ह ह ह ह ह ह।४।

 

चौपाई:-

नागिनि चक्र पदुम सब जागैं। सतगुरु बचन पै निज को पागै

अमृत पियै सुनै घट बाजा। सुर मुनि की संग जुरै समाजा।

ध्यान प्रकाश समाधि में जावै। बिधि का लिखा जियति कटवावे।

नाम की धुनि हर शै से जानै। सनमुख षट झाँकी छबि तानै।

तन तजि पहुँचि जाय निज धामा। हरि रंग रूप होय तहँ जामा।

यह अध्यात्म ज्ञान सुख दाई। अंधे कहैं रहै स्थाई।

 

दोहा:-

तन मन डाँका डारि कै लूटि लेत मुसक्याय।

ऐसी चितवनि श्याम की अंधे कहैं सुनाय॥

 

पद:-

हरि नन्दके आँगन खेलैं।१।

बाल रूप धरि सुर शक्ती संग खेलत होत झमेलैं।

भाँति भाँति पकवान मिठाई सब के मुख प्रभु मेलैं।

निज कर से जल सबन पिलावैं छोड़ैं सिरन फुलैलैं।

गमक पाय ब्रज बासी दौरैं जसुमति के घर पेलैं।५।

 

देखैं बाल बिनोद वहाँ पर आनन्द हिये सकेलैं।

अंधे कहैं लखैं जे प्राणी पाप ताप को ठेलैं।

अन्त त्यागि तन निज पुर राजैं गर्भ बास नहिं झेलैं।८।

 

दोहा:-

सीता कूप क जल पियैं नित्य नेम करि प्रेम।१।

रोग दोष सब शांति हों रहैं सदा तन छेम।२।

 

सोरठा:-

सुर मुनि की यह बानि अंधे कह अनुभव किया।३।

सारे सुख की खानि त्रिभुवन की माता सिया।४।

दोहा:-

नेम टेम औ प्रेम से सीता कुँड नहाय।५।

पाँचौं पैकरमा करै रोग भोग कटि जाय।६।

जब जल कुण्ड में होय नहिं रज मुख में लें डारि।७।

अंधे कह सुर मुनि कह्यो हम से बैन पुकारि।८।

 

दोहा:-

सब तीर्थन का जल परा भरथ कूप में जान।

लाय के निज घर में धरै रोज करै कछु पान।

 

सोरठा: सारे तीर्थ नहान फल ठौरे बैठे से मिलै।१।

अंधे करत बखान अन्त में हरि के पुर चलैं।२।

भाव से तरता जीव सुर मुनि सबहुन है कही।३।

जीव से होवै शीव अन्धे कह मानो सही।४।

 

दोहा:-

जिनको अनुभव है नहीं उन्हैं न हो विश्वास।

अंधे कह संसार में कड़ी द्वैत की फाँस॥

 

पद:-

केहि का सुनावों भक्तों केहि समुझावों।१।

नर नारी बहु धन्धे कह लौं उन्हैं मनावो।२।

मुश्किल से आवै कोई द्वैत हे समावो।३।

अंधे कहैं आपुइ बैठे हरि को रिझावो।४।

 

पद:-

खंभ फारि हरि नरहरि तन धरि हिरनाकश्यप उदर बिदारा।

दिब्य रूप धरि चढ़ि सिंहासन हिरनाकुश हरि धाम सिधारा।

महाघोर गर्जना भई तहँ सब लोकन गा हा हा कारा।

कमठ वराह कपैं सब दिग्गज शेष कि भूलि गई शुशकारा।

भँग समाधि भई जोगिनि की जो अखण्ड नहिं टूटन हारा।५।

 

जारी........