॥ श्री रामायण व गीता जी की प्रार्थना ॥(५)
दोहा:-
निज स्वरूप सम देंय करि,मौन न होवे गौन।
अन्धे कह सतगुरु करो, सुमिरो लो निज मौन।
पद:-
जब खटुका नेकउ नहीं तब खटका खुलि जाय।१।
अन्धे कह सतगुरु बचन, ठीक ठौर सो पाय।२।
खुटका चटका नमक है, बाढ़े खूब पियास।३।
अन्धे कह सारा बदन, कर दे सत्यानाश।४।
दोहा:-
हम हैं अन्धे गर्भ बास के। राम नाम जप भये पास के॥
शेर:-
सुमिरन विना नर तन वृथा आखिर में फिर पछितायतू।
अंधे कहैं सुर मुनि वचन चलि तर्क में सुख पायतू।
पद:-
नर तन को पाय जग में जब शुभ करम न होगा।
तब तो तुम्हारे दिल में दाया धरम न होगा।
सुमिरन बिना यह मनुवां पावन परम न होगा।
सतगुरु से भेद जानो आवागमन न होगा।
सब चोर हों किनारे कोई गरम न होगा।५।
चुप शांत दीन बनिये फिर तो वरम न होगा।
यह अपने कुल की रीति इस में शरम न होगा।
अन्धे कहैं अब चेतो नेकौ भरम न होगा।८।
दोहा:-
एकै रोम के छिद्र है जीव जात निज धाम।
अंधे कह सो मानिहै जानै रामक नाम॥
पद:-
भजन बिन बार बार जग नाचौ।
अब ही तो चित चेतत नाहीं मन की लगड़ी खाँचौ।
पढ़ि सुनि ज्ञान भक्ति की बातैं आँसु बहाइ के बाँचौ।
ठगते नहीं ठगाते घूमत मिलै न कौड़ी काँचौ।
सतगुरु करौ भेद तब पावो घट ही में घुस जाँचौ।५।
ध्यान प्रकाश समाधी होवै नाम के रंग में रांचौं।
राम सिया हर दम रहैं सन्मुख जो सब में रमै सांचौ।७।