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॥ श्री रामायण व गीता जी की प्रार्थना ॥(४)

दोहा:-

अन्धे कह पहुँचे वही, मन को लेवै जीत।

नाहीं तो घुल जाय वह, जिम बालू की भीत।

जो शोभा साकेत की वरन सकत नहिं कोय।

अन्धे कहँ देखत बने बुद्धी चौपट होय।

ग्यान वहाँ नहिं टिक सकै है विज्ञान क खेल।५।

 

अन्धे कह मन रोकिये जीव ब्रह्म से मेल।

मन रोके से ध्यान हो मन से होत समाधि।

मन से कुंडलिनी जगै मन से चक्रन चाल।

मन से सब नीरज खिलैं महक करैं मतवाल।

मन से नाम कि धुनि खुलै मन से मिटै उपाधि।१०।

 

मन से अमृत घट पियो मन से अनहद ताल।

मन से सब सुर मुनि मिलैं संग सिय राम कृपाल।

सब मन ही से होत है जो कुछ नीक बिकार।

अन्धे कहँ मानो सही सुर मुनि बेद पुकार।

मन से सब लोकन लखौ मन से होय प्रकास।

मन से कर्मन गति मिटै अन्त अचल पुर बास।१६।

पद:-

मन मस्त नाम के संग भया तब कौन दूसरा काम करे।१।

सब भूल गया कछु याद नहीं सतगुरु के चरनन शीश धरे।२।

आनन्द के संग सुगन्ध उड़ैं बस मन्द मुस्क्यात परे।३।

अन्धे कहैं ऐसे भक्त धन्य जे जियतै जग में आय तरें।४।

 

पद:-

शरन मरन और तरन को जाना सो साधू भजनानन्दी।१।

अन्धे कहैं जौन नहिं चेता सो स्वादू भोजनानन्दी।२।

ध्यान प्रकाश समाधि नाम औ रूप बिना काया गन्दी।३।

सतगुरु करि जे चेतत नाहीं कैसे छूटै भव बन्दी।४।

 

पद:-

अहँकारी बना साधू भया जम राज का बीड़ा।

जाय जम नर्क में छोड़ैं जुटै तन खाँय बहु कीड़ा।

हाय रे हाय कह उछरै सहै बहु किस्म की पीड़ा।

खान औ पान कह अन्धे खून औ पीव का सीड़ा।

नाम रूप परकास समाधी सब में चारिउ सामिल।

अंधे कहैं शरनि सतगुरु की जानि लेय तो कामिल।६।

 

पद:-

अन्धे कहैं जे सुमिरन करेंगे। सुमिरन करेगे तो श्रवण देंयगे॥

श्रवण देंयगे तो नैन देंयगे। नैन देंयगे तो दर्श देंयगे॥

दर्श देंयगे तो पास लेंयगे। पास लेंयगे तो बास देंयगे॥

जब बास देंयगे तो गांस लेंयगे। जब गांस लेंयगे तो फांस देंयगे॥

जब फांस देंयगे न सांस लेंयगे। न सांस लेंयगे तो आस देंयगे॥

जब आस देंगे तो खाँस देंगे। जब खांस देंगे तो हांथ लेंगे।१२।