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॥ अथ फुलवारी भ्रमण वर्णन॥

 

कह्यौ मुनि विश्वामित्र सुनाय। फूल पूजन हित लाओ जाय॥

श्री गुरु चरनन शीश नवाय। चले फुल बगिया दोनौ भाय॥

पहुँचि फुलवारी गे जब आय। देखि सुन्दर छबि अति सुखदाय॥

चहूँ दिशि घूमन लागे जाय। देखि माली गन पहुँचे आय॥

कह्यौ हरि फूल उतारन आय। श्री गुरु पूजन के हित भाय।१०।

 

सुनत सब माली हिय हुलसाय। कहैं प्रभु आप कि बगिया आय॥

उतारौ फूल जौन मन भाय। कहौ हम सब देवैं उतराय॥

कहत हरि मन्द मुसुक्याय। उतारैं हम औ लछिमन भाय॥

लीन एक कदली पत्र मंगाय। सरोवर में तहँ लीन धोवाय॥

बनायो दुइ दोना हरि भाय। दीन एक लछिमन को पकराय।२०।

 

बाम कर दोनो लीन्हे भाय। टहलने लगे चमन पर जाय॥

छुवैं जो कली तुरत खिलि जाय। तूरि लें वाको दोनो भाय॥

धरैं दोनों में मन हर्षाय। महक फूलन की अति सुखदाय॥

गये मालिन के ज्ञान हेराय। कहन चाहैं कछु कहा न जाय॥

फूल लै खड़े भये दोउ भाय। खिला गुलशन एकदम हर्षाय।३०।

 

दौरि कर माली सब तँह आय। खड़े कर जोरे बोलि न जाय॥

केतकी केंवड़ा है तँह भाय। नेवारी बेला औ मोतिआय॥

गुलाब गुल बाँस व चम्पा भाय। मालती जूही औ मोगराय॥

हीना और कदम्ब हैं भाय। तुलसी रामा श्यामा आय॥

सेवती गुल सब्बो तँह भाय। दुपहरी गुल मेहंदी सुख दाय।४०।

 

चाँदनी कुंद व गोड़हर भाय। गुलाचीनो कचनार सुहाय॥

अगस्त पिय बास कुरैया भाय। विष्णु क्रान्ता गल गल मल आय॥

बैजन्ती सूर्य मुखी तँह भाय। कटहरी गुल फिरंग सुख दाय॥

गलैंधा मिलौनिया सुख दाय। कनैरो मौलसिरी तँह भाय॥

मनहरन सदा सुहागिन भाय। दिल लगा गुलअनार सुखदाय।५०।

 

पाँड़री अमिलतास सुखदाय। लगे गुलशन बहार बृक्षाय॥

तरंग योजन छबि छावन भाय। पचरंग सोहन श्याम घटाय॥

संकोचन दल देवन तँह भाय। कनक मन्दार गोल गुल आय॥

पहाणी फूल बहुत रँग भाय। कहाँ तक नाम कौन कहि पाय॥

देख कर मन प्रसन्न ह्वै जाय। मँहक से तर दिमाग ह्वै जाय॥

 

बृक्ष जंगल में बहु रंग भाय। ग्राम के सब कोइ जानत आय॥

कन्द फल मूल व मेवा भाय। मिठाई इनकी कही न जाय॥

डेकारैं आवैं जो कोइ खाय। मस्त तन मन से होवै भाय।

कहैं समुझावैं कैसे भाय। श्री गुरु किरपा कछु कहि जाय॥

शब्द पक्षिन का मधुर सुनाय। सरोवर की शोभा अधिकाय।७०।

 

रंग रंग कमल खिले सुखदाय। भँवर गुंजार कही ना जाय॥

हंस चकई चकवा तँह भाय। कमठ मछली दादुर सुखदाय॥

मोर होरिल चातक मन भाय। कोकिला कीर रंग रंग आय॥

लालमुनिया तूती सुख पाय। दहिंगला श्यामा फुदकी भाय॥

दुबचरा धौर बनेवा भाय। पेरुल्ला कौड़िल्ला सुख दाय।८०।

 

सीक पर लेदुका सावन भाय। सारिका सारस मौज उड़ाय॥

टिटिहिरी कर बानक तँह भाय। घाघ चानक लावा सुखदाय॥

छपटुआ चाहा है तहँ भाय। गलारैं औ खञ्जन सुखदाय॥

भुजैला बुल बुल कड़रा भाय। पतेना कठ फोरवा हुलसाय॥

कबूतर कई रंग के भाय। परेई तड़ बुड़की सुख दाय।६०।

 

मुरगाबी गौरैया तँह आय। सुरखाव कि शोभा कही न जाय॥

बैगमा शारदूल कहवाय। तीनि कुञ्जर लै जो उड़ि जाय॥

जारी........