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॥ अथ फुलवारी भ्रमण वर्णन॥

जारी........

शुतुर हैं मुर्ग वहाँ पर भाय। तेज घोड़ा नहि जिनको पाय॥

गीध ढेल बाँस खट खटा भाय। बत्तक औ तीतिर अति सुखदाय॥

बाज बहरी जुर्रा तँह आय। कुही मँगवा सिकरा तँह भाय।१००।

 

मुसरिहा महरि छटा गुरिन भाय। शुवक औ भाद बकुल चुपकाय॥

धोबिनिया बेहना हैं तँह भाय। काक कटनास औ गादुर भाय॥

चील्ह औ अवाबील तँह आय। तहाँ पर शोभन चिड़िया भाय।

देंय कछु वाको शकुन बताय। जाय कोइ रोज़गार हित भाय॥

मिलै गर मारग में वँह आय। खड़ा हो सर्प फनै फैलाय।११०।

 

बैठिहौ वा के ऊपर भाय। देखिकै फिरि लौटै नहिं भाय।

होयगा बादशाह वह जाय। सृष्टी का खेल विचित्र है भाय॥

कहाँ तक कौन सकै बतलाय। सूँसि घरियाल मगर सुख पाय॥

खेल करैं जल में धूम मचाय। जंगली जीव जौन कोइ भाय॥

रहै आनन्द सबै सुख पाय। सिंह औ शेर कुञ्जरौ भाय।१२०।

 

तेंदुवा बन कुत्ता बन आय। अरना भैंसा औ गैड़ा भाय॥

हडूर औ भालू बिगवा आय। सिमिटुआ पेट चोर तँह भाय॥

डाँढ़ औ झाँर व जमबुकौ आय। हिरन घोड़राह नील तँह गाय॥

लोमड़ी शशा रहै हर्षाय। साहि औ बन बिलार सोंधिआय॥

चिलार बराह नकुल तँह आय। गोह सल्हू बिष खोपड़ा आय।१३०।

 

डाँग सुरवार औ बानर भाय। घूस औ मूस साँप बिछुआय॥

ऊसरौ साँड़ा गोजर आय। गिलहरी बृक्षन पर हैं भाय॥

कभी नीचै खेलैं सुखपाय। ओद सरिता के तट पर भाय॥

रहत हैं मानो मन हर्षाय। ग्राम के पशुन क हाल बताय॥

रहे अब थोरे देहिं लिखाय। गाय औ भैंस व घोड़ा भाय।१४०।

 

ऊँट खर मेढ़ा अजा कहाय। फील औ सुअर श्वान तँह भाय॥

ग्राम के सिंह जौन कहवाय। बिलारैं मूष कई रंग भाय॥

खेलते आपस में हर्षाय। कलित्तुर फूल बिरंजौ भाय॥

नगर में घूमैं मन हर्षाय। सरोवर तहाँ बने हैं भाय॥

पियैं जल हलुआ खाँय अघाय। पालकी औ गज रथ तहँ भाय।१५०।

 

नाल की बूचा पीनस आय। मियाना डोला है सुख दाय॥

चलैं लै धीमर मन हर्षाय। झिलमिला जाकट करतब भाय॥

बिना जाने कोइ खोल न पाय। मझोली गाड़ी अद्धा भाय॥

फिरिक रब्बा लहकड़ा कहाय। सिंहासन भाँति भांति के भाय॥

बनत हैं देखत कहा न जाय। अठारह खण्ड जनक गृह भाय।१६०।

 

बना है सुन्दर अति सुखदाय। पुरी के बासिन का है भाय॥

सात ही सात खण्ड मुद दाय। नगर के चारों दिशि फुलवाय॥

पूर्व दिशि फुलवारी मधि आय। बना श्री गिरिजा भवन सुहाय॥

सरोवर दक्षिण दिशि सुखदाय। मोहारा आठ बने तँह भाय॥

झरोखा नौ लागे सुखदाय। बना लाले पत्थर का भाय।१७०।

 

सोवरन पत्र बने चमकाय। मूर्ति काले पत्थर की भाय॥

पधारी पश्चिम मुख सुख दाय। होति पूजा अति प्रेम से भाय॥

भोग बहु बिधि के लागैं आय। बड़ा आनन्द कहा नहि जाय॥

जात ही सुधि बुधि जाय हेराय। वहाँ सब जीवन मेल सोहाय।

कहाँ तक कहौं कहा नहि जाय। दूध मोती हंसन हित भाय।१८०।

 

और सब फल और हलुआ पाय। घास चित बहलावन हित खाँय॥

रहे निशिबासर मौज उड़ाय। कोटि चाकर हैं जनक के भाय॥

करैं सब कार्य हिये हर्षाय। पवन तहँ मन्द चलत सुखदाय॥

रहैं सब जीव सुखी तँह भाय। जनकपुर शोभा कही न जाय॥

जहाँ पर आदि शक्ति भईं आय। होय नहिं कमती बढ़तै जाय।१९०।

जारी........