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॥ अथ जय माल वर्णन॥

 

जारी........

उड़ैं अंगद माता ढिग जाँय। परैं चरनन में अति हर्षाय॥

कहैं सब आपन हाल सुनाय। खुशी होवैं सुनि कै सिय माय॥

पिता जा को जैसा बलदाय। वैस ही पुत्र होत है आय।२४३०।

 

काज तुम्हीं से यह बनि आय। और से नहीं बनत पुत्राय॥

चरन परि अंगद कहैं सुनाय। जाव अब प्रभु ढिग माता धाय॥

चलैं करि जोरि उड़ैं फिरि भाय। पहुँचि जाँय सागर तट हर्षाय॥

करैं अस्नान चलैं सब धाय। जाय के कटक में पहुँचैं आय॥

करैं परनाम धरनि गिरि भाय। राम के चरन कमल पर आय।२४४०।

 

बैठि फिरि कहैं हाल सब गाय। सुनैं सब कटक बीर रिसिआँय॥

कहैं रघुनाथ लखन सुखदाय। सेन सब सागर उतरै भाय॥

युद्ध की ठना ठनी हो भाय। देरि मत करौ कहौं समुझाय॥

लखन हनुमान से कहैं सुनाय। हाँक एक कटक में देहु लगाय॥

पवन सुत देवैं हाँक सुनाय। चलौ वीरौं उतरौ पुल धाय।२४५०।

 

होय तय्यार सबै हर्षाय। राम सीता की जय करि भाय॥

पवन सुत राम लखन को धाय। लेंय दोउ काँधेन पर बैठाय॥

चलैं आगे हनुमत सुखदाय। राम सिय नाम लेत हर्षाय॥

सैन सब पीछे हरि गुन गाय। चलैं आनन्द वरनि नहिं जाय॥

पार में पहुँचि जाँय सब धाय। सवा घंटे में मानो भाय।२४६०।

 

स्वच्छ मैदान मनोहर भाय। बैठि तहुँ जाँय पवन पूताय॥

उतरि काँधेन पर से दोउ भाय। कहैं बैठो सब जन हर्षाय॥

कहैं औ बैठैं प्रभु लखनाय। बैठि सब कटक जाय सुख पाय॥

शीत औ उष्ण न परत बुझाय। नाम परताप रह्यौ तहँ छाय॥

दु:ख औ सुक्ख की समता आय। एक ही तत्व ऋक्ष कपि भाय।२४७०।

 

मंदोदरि रावन के ढिग जाय। बैठि शत खण्डा पर शिर नाय॥

दोऊ कर जोरि दीनता लाय। कहैं पिय सुनिये मम बचनाय॥

कहै रावन कहिये सुखदाय। जौन इच्छा होवै हर्षाय॥

वही हम करैं न देर लगाय। शोच काहे को तुम मन लाय॥

राज्य धन पुत्र पौत्र बहु आय। कौन कमती तुम को बतलाय।२४८०।

 

प्रिया मम प्राणन सम सुखदाय। बताओ देर रहीं क्यो लाय॥

कहै मन्दोदरि मन हर्षाय। प्रभु से बैर न कीजै राय॥

चराचर सब के मालिक आँय। सर्व व्यापक सब को उपजाय॥

बिष्णु शिव ब्रह्मा जिनको ध्याय। रहे हैं सुर मुनि सब गुन गाय॥

कृपा प्रभु की से सब बल पाय। देत हैं श्राप औ आशिष राय।२४९०।

 

एक हनुमान लंक में आय। नाम परताप को दीन देखाय॥

फूँकि सब लंका दीन्हेव राय। चल्यौ नहिं आप को कोइ उपाय॥

आप औ मेघनाद योधाय। बीरता बेचि लिहेव का राय॥

मनै जो पवन तनय को ध्याय। बचे सो हैं सब जानत राय॥

पुरी लंका जब विनय सुनाय। कूदि तब पवन तनय गे राय।२५००।

 

मारि आधे निश्चरन को धाय। फूँकि कै खाक कीन कपि आय॥

जरी गर्भिणी बहुत दुख पाय। कहाँ तक कहौं कहा नहिं जाय॥

जियति में आप के यह दुख आय। पुरी में परय्यौ बिचारौ राय॥

आप तो पण्डित ह्वै सुखदाय। नीति को लंक से दिहेव भगाय॥

एक निशि सब चपरे में राय। पड़े भूखे प्यासे अकुलाय।२५१०।

 

कीन विश्वकर्मा फिर किरपाय। पुरी सब वैसे दीन बनाय॥

आय फिरि अंगद पाँव अड़ाय। दीन सब वीरन गर्व लचाय॥

उठाय न सक्यौ कोई पग राय। रहे तहँ बैठे बहु योधाय॥

सुनो जिनके अस दूत हैं राय। भला मालिक से को लड़ि पाय॥

बचन मेरे मानो हर्षाय। नहीं अब हीं कछु बिगरय्यौ राय।२५२०।

जारी........