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॥ अथ जय माल वर्णन॥

जारी........

सिया को दीजै प्रभुहिं गहाय। परौ चरनन में सब बनि जाय॥

उधारन अधमन के रघुराय। दीन की सदा सुनत सुखदाय॥

चलौ जानकी मातु लै राय। चलैं पीछे हमहूँ हर्षाय॥

दर्श करि मातु पिता के राय। होय तन सुफ़ल कार्य्य बनि जाय॥

विनय हम करिहैं हरि से राय। आप की खता माफ़ ह्वै जाय।२५३०।

 

आप संग खड़े रहेव शिरनाय। बीसहूँ कर जोरे मम राय॥

चढ़ावो रथ पर सीता माय। चलौ लै देर न कीजै राय॥

रथै सामुद्र के तट ठहराय। चलब फिर पैदर वहँ से राय॥

देखतै कृपा करैं रघुराय। अर्ज यह आप से मेरी राय॥

पकरि कर कहैं पिया सुखदाय। देर अब काहे रहे लगाय।२५४०।

 

राज धन पुत्र संग नहिं जाय। समै फिर ऐसा मिला न राय॥

सृष्टि का खेल बड़ा दुखदाय। फँसे सो इसी चक्कर खाय॥

चित्त प्रभु चरनन देय लगाय। उसी का आवागमन नशाय॥

जिन्दगी थोड़े दिन की राय। बोय बिष अमृत फल को खाय॥

बचन सुनि मन्दोदरि के राय। क्रोध ऊपर से लीन बनाय।२५५०।

 

नैन बीसौं की पलक चढ़ाय। झिटिक कर दिहेव डाटि कै राय॥

परी गिरि धरनि डरी अति भाय। भई मुरछा दुइ घरी कि भाय॥

चेति जब भयो बैठि उठि भाय। कह्यो रावन तब बचन सुनाय॥

जाति अबला तू हमैं सिखाय। कहाँ से नीति के पढ़ि कै आय॥

सामने से हटि जा दुखदाय। हमारे समुहे कभी न आय।२५६०।

 

जैस बतखाव कीन तुइ आय। आज तक हमैं न कोई सिखाय॥

आज तक तू रानी मैं राय। दिखाय मुख नहिं आज से आय॥

पुरुष की नारि होय दुखदाय। त्यागि देवै पर बधै न भाय॥

कहत जो शूर बीर कोइ आय। जीभ मुख ते लेतेंऊ खिचवाय॥

फेरि चौहद्दा पर गड़वाय। निशाना तीरन शिर लगवाय।२५७०।

 

प्राण यम पुर को फेरि पठाय। देखतेंऊ बैठि हिया हर्षाय॥

बचन रावन के सुनि दुखदाय। मंदोदरि उठि गै शीश नवाय॥

भवन में पहुँचि गई जब जाय। बन्द करि पट भीतर बिलखाय॥

बदन मन व्याकुल रहा न जाय। कण्ठ में खुस्की घेरयौ आय॥

प्रगट भईं सीता माता जाय। शीश पर कर फेरय्यौ हर्षाय।२५८०।

 

फेरतै कर दुख गयो हेराय। परी चरनन में तन पुलकाय।

उठाय के माता उर में लाय। दीन सब ठीक भविष्य बताय॥

देव कन्याँ जो पाँच कहाँय। बड़ी सब में तुम ही कहवाय॥

समय अब आय गयो सुखदाय। चलो मम पुर बैठौ हर्षाय॥

बड़ा परदा जो यँह पर आय। ठीक हम तुम को दीन बताय।२५९०।

 

नाम जय विजय पुरातन आय। विष्णु के द्वारपाल दोउ भाय॥

श्राप सनकादिक दीन्हेव आय। पास गे बिष्णु के दोनो भाय॥

बिष्णु ने दीन भविष्य बताय। शम्भु का भजन कीन्ह यहँ आय॥

शम्भु ने परदा दीन हटाय। दशानन सब जानत बचनाय॥

दशानन कुम्भकर्ण दोउ भाय। फेरि प्रगटैं द्वापर में जाय।२६००।

 

नाम शिशुपाल दन्त बक्राय। होय वँह पर दोउन को जाय॥

लेंय अवतार प्रभू तहँ जाय। नाम श्रीकृष्ण जगत यश छाय॥

मरैंगे हरि हाथन दोउ भाय। जाँय बैकुण्ठ मगन गुन गाय॥

बनावत की रिसि तुम्हैं देखाय। सुनो मन्दोदरि दिहेव हटाय॥

संभारो निज स्वरूप हर्षाय। दीनता उर में रहै सदाय।२६१०।

 

हुवा संसार में जो कोइ आय। लागि कछु जाति जीव अकुलाय॥

फेरि पर वश यह जीव कहाय। गयो घर भूलि कौन बिधि जाय॥

जारी........