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॥ अथ जय माल वर्णन॥

 

जारी........

गृहस्थाश्रम अति सुखदाय। होय हरि किरपा तब बनि जाय॥

ब्रह्मचारी सन्यासी आय। वैष्णव बानप्रस्थ कहाय॥

इसी से प्रगटे सब हैं आय। रहैं हरि सुमिरि निशंक सदाय॥

त्याग सब मन ते तब ह्वै जाय। ज्ञान वैराग सहायक आय॥

होय अनुराग तबै सुख पाय। रहै आसक्त न किसी में भाय।३१००।

 

कि जैसे नीरज बारि सहाय। करै तन से तो कार्य्य सदाय॥

सुनैं धुनि छबि देखै पितु माय। तरैं औ तारैं और को आय॥

भक्त सियराम को सो मुददाय। एक रस रहै नहीं बिलगाय॥

आप हौ राम भक्त सुखदाय। आप को आप लिहेव अपनाय॥

लख्यौ मैं जस तब रूप को आय। आत्मा मिल्यो देर नहिं लाय।३११०।

 

कहैं हनुमान हिये हर्षाय। मातु यह तत्व ज्ञान कहवाय॥

बिभीषण मातु कहैं हर्षाय। श्री नारद मुनि दीन बताय॥

कहैं हनुमान धन्य हौ माय। भयो तन सुफल दरश तव पाय॥

होय अज्ञा अब कटक को जाँय। काज हरि का कछु देखैं माय॥

बिभीषण मातु कहैं हर्षाय। दूध फल मेवा लीजै पाय।३१२०।

 

कहैं हनुमान न कछु इच्छाय। समय तीसर अस्नान को आय॥

उठैं कर जोरि के शीश नवाय। बिभीषण मातु भवन को जाँय॥

उड़ैं हनुमान बेग से भाय। आय सीता माता ढिग जाँय॥

परैं चरनन में अति सुख पाय। मातु हर्षैं उर लेवैं लाय॥

हाल सब बतलावैं हर्षाय। सुनैं माता तन मन हुलसाय।३१३०।

 

चरन परि उड़ैं उदधि तट आय। करैं अस्नान हिये हर्षाय॥

आय प्रभु के चरनन परि जाँय। प्रभु हंसि उर में लेंय लगाय॥

कहैं सब चरित पवन सुत गाय। बिभीषण मातु बड़ी भक्ताय॥

गयन हम धैर्य्य देन प्रभु धाय। धैर्य्य रूप मातु सुखदाय॥

कहैं प्रभु सुनो बीर चित लाय। मातु जैसी पुत्रौ वैसाय।३१४०।

 

नारि सुत गृह धन त्यागि के आय। मातु के बचन मानि सुखदाय॥

बिभीषण सुनैं चरन परि जाँय। कहैं प्रभु आप की किरपा आय॥

आपके चरित मोहिं बतलाय। बाल पन मांहि नित्य मम माय॥

उसी का फल अब प्रगट्यौ आय। अधम को आप लीन अपनाय॥

भई फिर शाम सुनो चित लाय। करैं सब सन्ध्यो पासन भाय।३१५०।

 

करैं फिर भजन नाम मन लाय। इष्ट आपने अपने को भाय॥

बिभीषण प्रभु के निकट में आय। बैठि जाँय चरण पकड़ि हर्षाय॥

लगैं सेवा करने मन लाय। प्रीति रीति बढ़ी अधिकाय॥

कहन कछु चलैं बोलि नहिं आय। जानि प्रभु जाँय मनै की भाय॥

कहैं हरि मन्द मन्द मुसुकाय। बिभीषण कहौ जौन मन भाय।३१६०।

 

करौ इच्छा सो पूरन राय। होय नहिं नेक देर सुखदाय॥

बिभीषण कहैं सुनो सुखदाय। भजन की बिधि मोहिं देहु बताय॥

रहौं जब तक जग में हर्षाय। निरन्तर नाम में चित्त लगाय॥

रूप सीता माता सुखदाय। आपके बाम भाग दिखलायं॥

रहै हरदम मम सन्मुख आय। यही मैं चाहत हूँ सुखदाय।३१७०।

 

कहैं प्रभु सुनो बिभीषण राय। देंय हनुमान तुम्हैं बतलाय॥

मातु सब तुमरी जानत राय। दीन नारद मुनि उन्हें सुझाय॥

नाम है सुखी सुखी हैं राय। जैस है नाम गुणै वैसाय॥

जाव हनुमान के पास में राय। भजन में बैठे परत दिखाय॥

जाय के बैठि रह्यौ चुपकाय। उठैं तब मम ढिग चलिहैं धाय।३१८०।

 

सामने झट ह्वै जायो राय। खड़े ह्वै है हनुमत हर्षाय॥

दीन ह्वै कह्यौ कार्य्य सरि जाय। बैन हरि के सुनि मन हर्षाय॥

जारी........