साईट में खोजें

२८० ॥ श्री राम दीन जी॥

जारी........

कहीं हंसत कहिं रंज करत हैं कहीं मौन ह्वै जाई जी।

कहीं अन्न को पावत नाहीं कहीं पै फलन को खाई जी।

कहीं पै खाली दुग्ध पियत हैं कहीं पै पत्ती पाई जी।७०।

कहीं पै केवल कन्द पावते कहीं पै राखी खाई जी।

कहीं पै जल ही को अहार करैं कहीं जलहु नहिं पाई जी।

कहीं पै मारैं मार खाँय अरु कहीं रहैं समुझाई जी।

कहीं पै वृक्ष के नीचे बैठे कहीं मैदान में भाई जी।

कहीं पै उलटा झूलि रहै हैं कहीं पै बाँह उठाई जी।

तीनि काल अस्नान करैं कहुँ कहिं अस्नान न भाई जी।

इतर फुलेल मलें कहिं तन में कहिं पर देह रुखाई जी।

तिलक लगावैं कहीं पै सुन्दर कहीं तिलक नहिं भाई जी।

कहीं पर खड़े रहैं निशि बासर कहिं पर पौढ़े भाई जी।

कहीं पर नीच बने बैठे हैं कहिं पर ऊँच कहाई जी।८०।

कहीं पै आपै तीरथ बनिगे कहिं पर पर्वत भाई जी।

कहीं पै यज्ञ हवन करते हैं कहीं पै बन्द कराई जी।

कहीं पै अपनी मूर्ति बनाय के आपै पूजत भाई जी।

आपै भोजन आप बनावैं आपै भोग लगाई जी।

आपै आप को ध्यान करत हैं आपै देखैं भाई जी।

आपै आप को पाय रहै हैं आपै आप पवाई जी।

आप आप हैं आप आप ही आपै आप हेराई जी।

आपै आप आप अपनावैं आपै आप दुराई जी।

आपै करनी आपै भरनी आपै आप बनाई जी।

अपनै अपनी निन्दा करते अपनै स्तुति गाई जी।९०।

अपनै एक अनेक कहूँ नहिं अपनै सब में भाई जी।

अपनै सबै वस्तु बनि बैठे अपने ढूढ़न जाई जी।

अपनै आप को जानि लेत हैं अपनै देत बकाई जी।

अपनै अपने कहे में परिकै अपनै चक्कर खाई जी।

अपनै यहि बिधि खेल बनाया अपने रहे बताई जी।

साँचे गुरु से जानि लेय अभ्यास करै चित लाई जी।

प्रथम ध्यान जो करै गुरु का हरि प्रसन्न हों भाई जी।

यह मर्य्याद बनाई हरि की सुर मुनि संतन गाई जी।

राम रूप सब सृष्टी दर्शै ज्ञान गुमान हेराई जी।

महा ज्ञान का दर्जा यह है निर्विकार ह्वै जाई जी।१००।

प्राण में जीव जीव में आतम आतम में हरि भाई जी।

शब्द प्राण औ शब्द जीव है शब्दै आतम आई जी।

सत्य पुरुष का नाम शब्द है जौन रकार कहाई जी।

सब में ब्यापक या को जानो सांच तुम्हैं बतलाई जी।

नाना चरित इसी से प्रकटैं इसी में जात समाई जी।

इस बिधि को जो जानि लेय सोई यह गारी गाई जी।

नाही तो वह समुझि न पैहै पढ़ के फल क्या पाई जी।

जब कछु साधन करिकै देखी तब आनन्द हिय आई जी।

पढ़न सुनत ते परे होय तब आपै आप देखाई जी।

गंगोतरी जल गिरत जहाँ ते बास खास वँह पाई जी।११०।

सुर मुनि दर्शन देत कृपा करि घूमन सब कहुँ जाई जी।

राम नाम जो सुमिरन करिहै होय सुखी सो भाई जी।

सब लोकन में वाकी खातिर तुम को ठीक बताई जी।

गारी कीन समाप्त श्री गुरु चरनन में परि भाई जी।११४।


दोहा:-

आदि शक्ति श्री जानकी, नाना रूप बनाय।

जीवन को पालन करैं, मातु रूप ते आय॥

श्री सीता श्री राधिका, श्री रुक्मिणी जान।

ब्रह्माणी गिरिजा रमा, काली दुर्गा मान॥

जारी........