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२६६ ॥ श्री अंधे शाह जी ॥ (२६८)


दोहा:-

नाद विन्दो उपनिषद में उलटा ह्वैगा ध्यान।

अंधे कह हनुमान हर हमको दीन्हों ज्ञान॥

सूरति बाँयें वेद धरि सुनो शब्द की तान।

अंधे कह सर्वत्र ते ररंकार भन्नान॥

ध्यान प्रकाश समाधि हो सुधि बुधि वहाँ भुलान।

अंधे कह सन्मुख रहैं षट झाँकी सुख खान॥

अनहद बाजा घट बजै करो अमी रस पान।

अंधे कह सुर मुनि मिलैं मानैं प्राण समान॥

षट चक्कर नागिनि जगै सातौं कमल फुलान।

अंधे कह तन छोड़ि कै लो साकेत में थान।५।


दोहा:-

सूरति शब्द कि जाप यह अजपा या को नाम।

अंधे कह सतगुरु करो सारो अपना काम।

नैन जीभ कर नहिं हिलैं अपनै होवै जाप।

अंधे कह देखौ सुनौ मेटौ भव की ताप।४।


सोरठा:-

है अनादि यह खेल सुर मुनि की बानी कही।

जीव ब्रह्म से मेल अंधे कह तब हो सही॥


शेर:-

आलस ने बस में कीन्हा भारत के नर व नारी।

अंधे कहैं इसी से वे हो रहे दुखारी॥


शेर:-

धुनि गैब की घहरा रही हर शै से जो सुनते हैं जी।

अंधे कहैं वे ब्रह्म को सरवत्र में मनते हैं जी॥


दोहा:-

बंधा माया में बंधा कैसे छूटै दोय।

अंधे कह सतगुरु शरनि निरबंधा सो होय॥