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२४१ ॥ श्री अंधे शाह जी ॥ (२६४)


पद:-

अफ़लातून बने जे घूमत भजन में मन को नहिं लाते।

अंधे कहैं अन्त चलि नर्क में पल भर कल कोइ नहिं पाते॥

आँखी कान खुले नहिं अपने औरन को उपदेश करैं।

अंधे कहैं ज्ञान यह झूँठा अन्त छोड़ि तन नर्क परैं।२।