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२४१ ॥ श्री अंधे शाह जी ॥ (२५५)


पद:-

बार बार हरि को हैं टेरत प्रेम बिना प्रभु मसकत नाहीं।

अंधे कहैं भजन यह झूठा नेकौं आगे चसकत नाहीं।

सतगुरु करि सुमिरन जिन जाना तिनको मुरही भसकत नाहीं।

अन्त छोड़ि तन गये अमरपुर फेरि जगत में खसकत नाहीं।४।