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२४१ ॥ श्री अंधे शाह जी ॥ (२५१)


पद:-

श्री वशिष्ट जी विश्वामित्र को लव सतसंग क भेद बतायो।

राम नाम की र रंकार धुनि हर शै से सुनि सुख उमड़ायो।

राम सिया की झाँकी अद्भुद सन्मुख आय छटा छवि छायो।

सुर मुनि आय आय कियो जै जै हर्ष हर्ष उर में लिपटायो।४।

नागिनि जगी चक्र षट बेधे सातों कमलन महक उड़ायो।

अनहद बाजा बाजन लागे अमृत पियो गगन झरि लायो।

भयो प्रकाश दशा लय पहुँचो कर्म रेख पर मेख मरायो।

अंधे कहैं धन्य ते प्रानी जिन सतगुरु करि तन फल पायो।८।