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२१० ॥ श्री अंधे शाह जी ॥ (२३७)


पद:-

काया में सब खेल बना है देखन वाले थोड़े जी ।

सीता राम सीता राम रा़धे श्याम राधे श्याम॥

बिन सतगुरु कोइ भेद न पावै रहते कोर के कोरे हैं जी।

सीता राम सीता राम रा़धे श्याम राधे श्याम॥

पढ़ि सुनि लिखि कंठस्थ लीन कै बोलत दोउ कर जोरे हैं जी।

सीता राम सीता राम रा़धे श्याम राधे श्याम॥

अंधे कहैं अंत जम पकड़ैं जाय नर्क में बोरे हैं जी।

सीता राम सीता राम रा़धे श्याम राधे श्याम।४।