२१० ॥ श्री अंधे शाह जी ॥(२२१)
पद:-
बाजा बाजैं घट में अनहद भक्तौं सुनिये सुरति लगाय।
सतगुरु से जप जतन जानि कै छोड़ि देव पंडिताय।
या से सार वस्तु नहि मिलिहै लूटत मान बड़ाय।
अमृत पियो गगन ते टपकै स्वाद न सकौ बताय।
सुर मुनि आय आय दें आशिष दोनो करन उठाय।५।
नागिनि जगै चक्र षट बेधैं सातौं कमल फुलाय।
उड़ै तरंग मस्त ह्वै जावै मुख से बोलि न जाय।
गद गद कंठ रोम सब पुलकैं नैन नीर झरि लाय।
हालै शीश बदन सब कांपै सो सुख वरनि न जाय।
तेज समाधि नाम धुनि हर दम हर शै से भन्नाय।१०।
सिया राम प्रिय श्याम रमा हरि सन्मुख दें छबि छाय।
अंधे कहैं अन्त निज पुर हो आवागमन नशाय।१२।