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१ ॥ श्री अंधे शाह जी ॥(१८७)


पद:-

मन भजन की बिधि में सटा नहीं, बिधि लेख भाल से कटा नहीं।

धुनि तेज समाधि में अंटा नही, सन्मुख सिय राम की छटा नहीं।

जब सान मान तन घटा नहीं, अन्धे कहैं दोउ दिसि पटा नहीं।

सतगुरु करि प्रेम से हटा नहीं, सो अजा के हाथ से फटा नहीं।४।