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१ ॥ श्री अंधे शाह जी ॥(१८३)


दोहा:-

जिरह छोड़ि अजपा सिखौ गिरह न काटैं चोर।

बिरह उठै तब प्रेम की सुनो नाम का शोर॥

ध्यान प्रकास समाधि हो छूटै मोर व तोर।

हर दम सन्मुख में रहैं राधे नन्द किशोर॥

अन्धे कह सतगुरु शरनि सूरति शब्द में ज़ोर।

यही भजन सुर मुनि करैं सब का मानु निचोर।३।