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१ ॥ श्री अंधे शाह जी ॥(१७८)


दोहा:-

रं रं की ध्वनि होत है अमित भानु परकास।

अन्धे कह सतगुरु शरनि सुनै लखै निज पास॥

सूरति चेला जानिये शब्द गुरू है जान।

अन्धे कह जब मेल भा तब न होय बिलगान॥

जल से जल की लहरि उठि फेरि जात ह्वै एक।

अन्धे कह नहिं बिलग हो कीजै युक्ति अनेक॥

सतगुरु शरनि में जाय के भजन करै मन लाय।

अन्धे कह निर्मल भया आवागमन नशाय।४।


दोहा:-

ररंकार सरकार हैं सब में सब से न्यार।

अन्धे कह सतगुरु सरनि जानि होहु भवपार॥