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१ ॥ श्री अंधे शाह जी ॥ (१५५)


पद:-

भजन करने का मज़ा पावैंगे वह।

सतगुरु को करि मन नाम पै लावैंगे वह।

हर समय सिय राम को ताकैंगे मुश्क्यावैंगे वह।

अन्धे कहैं तन छोड़ि के फिरि गर्भ नहि आवैंगे वह।४।