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१ ॥ श्री अंधे शाह जी ॥(१५३)


पद:-

सतगुरु करि मन जे मारि गये। सन्मुख सिय राम निहारि गये॥

सब चोर उन्हीं से हारि गये। जियतै कर्मन गति टारि गये॥

धुनि नाम प्रकास संभारि गये। लय में चलि सुधि बुधि ढारि गये॥

बहु जीवन को निसतार गये। अन्धे कहैं अवध सिधारि गये।८।