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१ ॥ श्री अंधे शाह जी ॥(१३३)


पद:-

नृत्य करत त्रिभुवन भुवाल।

क्रीट मुकुट सोहैं भाल कानन कुण्डल हैं आल।

रूप रंग अति विशाल बंशी की धुनि रसाल।

सखा सखी देत ताल ऊपर करि कर उछाल।४।

बाजन पर रहत ख्याल घुँघरू करते कमाल।

गावत पद चारि ताल बाँधत बोलन पराल।

झुकि झुकि सब हाल हाल नाचत अंगन सँभाल।

निरखै सो हो निहाल अन्धे कहैं कटै जाल।८।


दोहा:-

मन जब तक पावत नहीं अपना ठीक मुकाम।

अन्धे कह तब ही तलक घूमत है बदनाम॥