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१ ॥ श्री अंधे शाह जी ॥(१३१)


पद:-

निज इष्ट को भुला कर मिलिहै कहाँ ठेकाना।

साठै घड़ी के अन्दर जम लाइहैं परवाना।

तब क्या कहोगे उनसे चलिहै न कुछ बहाना।

तन से निसारि तुमको इजलास पर बिठाना।

पेसी कराके वँह पर पूछेंगे क्या कमाना।५।

जैसा हिसाब होगा वैसे हुकुम सुनाना।

कर पैर मुख औ आँखैं इन्द्री विषय की काना।

यह सब गवाह होंगे साँचे करैं बयाना।

तब तो भला बतावो होगा कहाँ लुकाना।

सतगुरु से जानि सुमिरन बनि दीन तानो ताना।१०।

धुनि ध्यान नूर लय हो बिधि का लिखा मिटाना।

सुर मुनि मिलैं औ भेटैं बोलैं हृदय जुड़ाना।

नागिनि औ चक्र नाचैं कमलन क हो फुलाना।

महकैं तरह तरह की दोनो स्वरन से आना।

अनहद बजै सुनो घट अमृत क होगा पाना।१५।

पितु मातु सन्मुख राजैं जिनका रचा जहाना।

पढ़ि सुनि के जौन मानै जानो वही है दाना।

हैं बीज मात्र सच्चे धोखे क है जमाना।

तन त्यागि कर के अन्धे कहैं गर्भ हो न आना।

सब के हितार्थ यह पद हमने सही बखाना ।१५।