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१ ॥ श्री अंधे शाह जी ॥ (११८)


पद:-

पंच होय विश्वास की सूरति करो कमान।

तन का तरकस लेव करि शब्द बनावो बान।

बनो शिकारी ठीक सब नेकौ हुचै न तीर।

अन्धे कह सन्मुख रहैं हर दम सिय रघुबीर।४।