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१ ॥ श्री अंधे शाह जी ॥ (११५)


पद:-

जानि सतगुरु से पूजन बिधि करै सो तो पुजारी है।

लगा तन मन किया जिसने भया जियतै सुखारी है।

प्रगट मूरति से हो करके कहैं तू तो स्वनारी है।

भाव जिसमें नहीं आवै कहैं अन्धे अनारी है।४।