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१ ॥ श्री अंधे शाह जी ॥(११०)


पद:-

जग में आये गे चले सुमिरयौ नहिं हरि नाम॥

अन्धे कह नाचत फिरै मिलत नहीं विश्राम।


चौबोला:-

मिलत नहीं विश्राम कीन जब रद्दी खाता।

कर्मन के अनुसार दुःख सुख रचा बिधाता॥

सकत न कोई छुटाय वहां किस से है नाता।

अन्धे कहैं पुकारि नारि नर सुनिये बाता।२।