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१ ॥ श्री अंधे शाह जी ॥(९५)


शेर:-

परीक्षा फल में सच्चा है सो कच्चा हो नहीं सकता।

कहैं अन्धे बचन मानो गरभ में रो नहीं सकता॥

नतीजा उसका है अव्वल जो हरि के भजन में लागा।

जानि मारग को सतगुरु से समै को नहिं किया नागा॥

ध्यान धुनि नूर लै पायो रूप सन्मुख में है तागा।

कहैं अन्धे तजा तन जब तो चट साकेत को भागा।३।


दोहा:-

दया धर्म छोड़ै नहीं जब तक तन में श्वाँस।

अन्धे कह तन छोड़ि कै पावैं हरि पुर बास॥