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१ ॥ श्री अंधे शाह जी ॥(९२)


पद:-

कौनिहुँ जनम अवध बस जोई। राम परायन सो नर होई॥

सतगुरु से सुमिरन बिधि जानै। नाम बीज ले बोई॥

नाम कि धुनि परकास समाधी, पाप ताप दे धोई।

सिया राम की झाँकी हर दम, सन्मुख वाके होई।

अन्धे कहैं अन्त निजपुर हो, फेरि गर्भ नहिं रोई।

यह पद पढ़ै सुनै गुनि लेवै, चतुर सयानो सोई।६।