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१ ॥ श्री अंधे शाह जी ॥(९०)


दोहा:-

गोस्वामी तुलसी दास जी रामायन में गाय।

कालहिं कर्महिं इश्वरहिं मिथ्या दोष लगाय॥

आँखी कान खुलैं जबै सो इस भेद को पाय।

अन्धे कह सतगुरु बिना जीव रहे चकराय।२।


चौबोला:-

जीव रहे चकराय चलत नहिं कछु हुशियारी।

बिन सतगुरु के बने रहत मन की मति मारी।

ध्यान प्रकाश समाधि नाम धुनि होत करारी।

हर शै से सुनि लेहु रहत है रं रं जारी।४।

हर दम सीता राम रहैं सन्मुख सुख भारी।

सुर मुनि नित प्रति मिलैं कहैं तुम्हरी बलिहारी।

अन्त त्यागि तन चलौ रहौ साकेत मंझारी।

अन्धे कहैं सुनाय छूटि गई जग की पारी।८।