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१ ॥ श्री अंधे शाह जी ॥(७९)


पद:-

राम नाम खुद लेत तलासी।

सतगुरु करि सुमिरन बिधि जानो छोड़ो कपट औ हाँसी।

मन को चोरन से लै लेवै अपने संग में ठाँसी।

पाँचों को तब मारि निकारै कौन सकत तब गाँसी।४।

ध्यान प्रकास समाधि धुनी हो कर्म शुभाशुभ नाशी।

हर दम राम सिया रहैं सन्मुख और न दूजा भासी।

अन्धे कहैं अन्त निज पुर हो छूटै गर्भ की फाँसी।

अजर अमर हरि रूप रंग हैं वँह के सबै निवासी।८।