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१ ॥ श्री अंधे शाह जी ॥(६७)


पद:-

सतगुरु करै सो जानै हर शै से होती है धुनी।

अजपा यही है भक्तौं जियतै में पावै जो सुनी।

परकास ध्यान समाधि सन्मुख रूप भेटैं सुर मुनी।

अनहद बजै अमृत पियै बिधि लेख को देवै भुनी।

नागिनि जगा चक्कर चला कमलन खिलावै ह्वै गुनी।

अन्धे कहैं दोनो दिसा बलिहार निज कुल में चुनी।६।