१ ॥ श्री अंधे शाह जी ॥(६५)
पद:-
मन दुष्ट को दुष्टन के ढिग से अब हटाना ही भला।
सतगुरु से सुमिरन सीख लो तब लागिहै तेहरी कला।
आज तक इन सबौं ने जीवन को जग में है खला।
ध्यान धुनि परकास लय लो बन्द हो सब का गला।४।
रेफ़ बिन्दू दया सिन्धू का सबी जां झल झला।
हर समय हर शै से रं रं पाप ताप को दे जला।
अद्वैत की लै धूरि तन में जिस भगत ने है मला।
अन्धे कहैं उस ने जियत ही गर्भ के दुख को तला।८।