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१ ॥ श्री अंधे शाह जी ॥(४८)


पद:-

करो सतगुरु भजो हरि को मिलै तब नाम का मंजन।

ध्यान धुनि नूर लै होवै हटै तब सब मनोरंजन।

छटा सिंगार छबि अनुपम सामने होंय भव भंजन।

कहैं अंधे जियति जानै मिटै तब गर्भ का गंजन।४।