१ ॥ श्री अंधे शाह जी ॥(४६)
पद:-
सीताराम के पुर तब पहुँचै जब सतगुरु से मेल करै।
ध्यान प्रकास समाधि नाम धुनि रूप सामने आय ठरै।
अमृत पियै सुनै घट अनहद सुर मुनि के पग शीश धरै।
कमल चक्र शिव शक्ती जागै सो भक्तै जियतै में तरै।
सब लोकन का देखि रजिस्टर करै मुआइना मौज परै।
अंधे कहैं भया मुद मंगल पाही छोड़ि के रहै घरै।६।