१ ॥ श्री अंधे शाह जी ॥(३३)
पद:-
मन हमका अब भरमावो ना हम तुम का सतगुरु करिल्यावै।
तुम पाप करम करते फिरते, मम चित्रगुप्त खाता भरते,
अब मानि बैन तलफावो ना हम तुम का सतगुरु करिल्यावै।
तन छिन भँगी, तुम बहु रंगी, या से अब नर्क पठावो ना,
हम तुमका सतगुरु करिल्यावै।
शुभ कामन में जब लागौगे तब संग में मेरे पागौगे,
बस शान्ति रहौ कहीं जावो ना, हम तुमका सतगुरु करिल्यावै।
धुनि ध्यान प्रकाश समाधी हो, चोरन की हटै उपाधी हो,
उनके दिसि नज़र उठावो ना, हम तुमका सतगुरु करिल्यावै।५।
क्या छबि सिंगार छटा चम चम, षट रूप लखौ सन्मुख हर दम,
तन स्वांस समय अस पावो ना हम तुम का सतगुरु करिल्यावै।
अनहद सुनिये अमृत छक करि, सुर मुनि भेटैं नित हंसि हंसि कर,
तब द्वैत की खाक लगावो ना, हम तुमका सतगुरु करिल्यावै।
नागिनि औ चक्कर कमल जगै, तन त्यागि के अपने धाम भगैं,
अंधे कहैं अब गर्भ में आवो ना, हम तुमका सतगुरु करिल्यावै।८।