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१ ॥ श्री अंधे शाह जी ॥(२८)


पद:-

पहुँचि जाय त्रिपाद बिभूति में सतगुरु करि जो सुमिरन सीखे।

ध्यान प्रकाश समाधि नाम धुनि हर दम राम सिया को दीखे।

सुर मुनि मिलैं सुनै घट अनहद छिन छिन में अमृत रस चीखे।

नागिनि चक्र कमल सब जागै जियतै मरै बासना लीखे।

अंधे कहैं दीनता के बिन परमारथ की मिलत न भीखे।

नर तन पाय के जे नहिं चेतैं ते दोनो दिशि से हो तीखे।६।