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१ ॥ श्री अंधे शाह जी ॥(१४)


पद:-

सतगुरु से मारग जानि कै सुमिरन कि बिधि को सीख लो।

अंधे कहैं तन मन जुरै तप धन कि प्यारे भीख लो।

धुनि ध्यान लै परकास सन्मुख राम सीता दीख लो।

सुर मुनि मिलैं अनहद सुनो अमृत गगन में चीख लो।४।