साईट में खोजें

॥ श्री अन्धे शाह जी ॥

जारी........

जो कछु तुम यहँ पर कियो भाखें नीक बिकार॥

एव मस्तु माता कह्यो कारज भयो तुरन्त।

सुर मुनि सब आये तहाँ देर न लागि जुरन्त॥

साज बजावैं गान करि पंखा चँवर ढुरन्त।

स्तुति माता की करैं अनुभव शब्द फुरन्त॥

जै जै कार करैं सबै निज निज करन उठाय।

फूलन की बर्षा तहाँ शोभा वरनि न जाय॥

बलिहारी सतगुरु की जिन यह भेद बताय।

अन्धे कह उनके बिना ठीक ठौर को पाय।५।

सब सुर मुनि अन्तर भये चरनन पर धऱि शीश।

माता सब के सिरन कर धरि के दीन असीश॥

सीता मढ़ी में मातु मोहिं दियो यही बकसीश।

अन्धे कह सो हम कहा साखी हैं जगदीश॥

पढ़ै सुनै औ गुनै जो लिखै मनहिं हरषाय।

नाम रूप का फल मिलै अन्त में निजपुर जाय॥

अन्धे शाह कहैं मेरा सीता मढ़ी मुकाम।

षट झाँकी सन्मुख रहै एक तार धुनि नाम।९।

ऊसर बरषा त्रण नहिं जामा. संत हृदय जिमि उपजै कामा।

सतगुरु से लै राम कनामा। सुमिरन में अयो मन जामा।

ध्यान धुनी परकास तभी भी। लय में करो कम तेऊ खामा।

सनमुष राम सिय वसु जामा। नरिखों संग में सुर मुनि आमा।

अंधे कहैं संग सब साभा। जियति जानि चलिये सुख धामा।

है अनमोल ल लागै दामा। सच्चेगा एक का पड़ कामा।६।