४६२ ॥ श्री निछावर शाह जी॥ (४)
पद:-
लीजै राम नाम का छाता।
सतगुरु करि सुमिरन बिधि जानो तब हत्थे में आता।
ध्यान प्रकाश समाधि नाम धुनि हर शै से भन्नाता।
नागिन जगै चक्र षट बेधैं सातौं कमल फुलाता।
सिया राम प्रिय श्याम रमा हरि सन्मुख में मुसक्याता।५।
अमृत पिओ सुनो घट अनहद सुर मुनि उर में लाता।
उड़ै तरंग मस्त हो तन मन मुख से बोल न आता।
कहैं निछावर शाह त्यागि तन चलि घर बैठक पाता।८।