साईट में खोजें

४३१ ॥ श्री तरजन शाह जी ॥(३)


शेर:-

शम्स तबरेज़ की खाल खिंचाई सरमद का सर जुदा किया।

ईसा औ मंसूर को फाँसी दे करके तब बिदा किया।

तेग़ बहादुर का सर काटा बापू के गोली मारी।

डिगे नहीं यह भक्त जक्त में जीति गये भव की पारी।

जिस बिधि से हरि राखैं उसी तरह रहना चहिये।५।

तब तो दोनों दिसि बलिहारी दुख सुख सम सहना चहिये।

धरम ब्याधा की बानी भक्तों लीजै तन मन मानी जी।

हाट बाट औ घाट में बैठे साधू बनि अज्ञानी जी।

जो अपना कल्यान चहै तो इन ढिग जाय न हानी जी।

चोरन के भैरों में हरदम फेरत इनकी घानी जी।१०।

तरजन कहैं करो अब सतगुरु सुमिरौ सारंग पानी जी।

अन्त त्यागि तन निज पुर बैठो राखौ निज कुल कानी जी।१२।


शेर:-

बीज पाप के बोकर भाई स्वर्ग की आशा मत करना।

तरजन कहैं बिना सतगुरु के भव सागर नहिं हो तरना॥


दोहा:-

जो जितना ही बड़ा है उतना ही गंभीर।

तरजन कह दुख सुख सहै हरै पराई पीर॥