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४२५ ॥ श्री दरवा शाह जी ॥


पद:-

पकड़ौ राम नाम का सिरवा।

सतगुरु करि सुमिरन बिधि जानो शांत होंय खट किरवा।

ध्यान प्रकाश समाधी होवै जो बिधि लेख को चिरवा।

राधा माधो दरशन देवैं पीछे कदम का बिरवा।

वंशी अधर धरे हैं कूकत तन मन हरि ले पिरवा।५।

सखा सखी सब सुनि के दौड़ें नेक धरत नहिं घिरवा।

हिल मिल रास होन तब लागे श्री जमुना के तिरवा।

नाना भाँति की बटै मिठाई दही मही औ क्षिखा।

माखन मिश्री चाट लगावैं ऊपर ते लें निरवा।

अंतराय तब चट सब होवैं मिलैं न मानो हिरवा।१०।

यह सुख लूटौ भक्तों जूटौ दीन बनो तजि टिरवा।

अन्त त्यागि तन चढ़ि सिंहासन बैठे हरि संघ घिरवा।१२।