४२३ ॥ श्री दरैती शाह जी ॥
पद:-
कहैं दरैती, छुटी अनीती, भजन की रीती गुरु बतायो।
धुनि ध्यान लै तेज भा चमाचम प्रिय श्याम आकर सन्मुख।
में छायो। बजैं घट बाजा मिलैं नित सुर मुनि चखौं।
अमी रस हिया जुड़ायो। जगी है नागिन फिरैं सब।
चक्कर कमल खिलें क्या सुगन्ध छायो।५।