साईट में खोजें

४१४ ॥ श्री राम धन जी ॥


पद:-

ध्यान प्रकाश समाधि नाम धुनि रूप मिल्यो भइ सहज समाधी।

सतगुरु बिन यह पद है दुर्लभ या से मिटती सबै उपाधी।

बिधि हरि हर सब सुर मुनि भाख्यो सूरति शब्द में दीजै बांधी।

काह बताय सकौ तब भक्तौं प्रेम भाव में जावो रांधी।

बीज मंत्र के अन्तरगत सब रं रं रं की चलती आंधी।५।

को बिलगाय सकै तब वाको दाल साग जिमि परि गई गांधी।

शान्ति दीन बनि दास कहावो तब हो श्रेष्ठ बटो यह बाधी।

अन्त त्यागि तन निज पुर जावो राम ब्रह्म तहं लेवैं साधी।८।