४०९ ॥ श्री गीता मानस दास जी ॥
गीता मानस पढ़ना सुनना, गीता मानस लिखना धरना।
गीता मानस पूजन करना, गीता मानस हर दम रखना।
गीता मानस कीर्तन करना, गीता मानस चरनन परना।
गीता मानस से करि हवना, वही भस्म लै तन में मलना।
गीता मानस भोग लगाना, बांटि प्रसाद आप फिरि पाना।५।
गीता मानस सैन कराना, नीचे ऊपर वस्त्र लगाना।
गीता मानस फेरि जगाना, नेम टेम का रखिये ध्याना।
गीता मानस जपि तर जाना, कलि प्राणिन हित हेतु महाना।
मीता मानस सुर मुनि माना, या में बसत श्री भगवाना।
गीता मानस सदा कहाना, इन ही ते होवै कल्याना।१०।
गीता मानस दास है नामा, इन ही ते पूरन भा कामा।
यही संग में मेरे सामाँ, जो दोनो दिसि की है थामा।१२।