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३९७ ॥ श्री नखरे शाह जी ॥


पद:-

नखरा राम नाम मन भाया।

सतगुरु करि सुमिरन बिधि जाना तन मन प्रेम में ताया।

ध्यान प्रकाश समाधि नाम धुनि रूप सामने छाया।

अनहद सुना पिया घट अमृत सुर मुनि संग बतलाया।

नागिन जगी चक्र षट नाचें सातौं कमल खिलाया।५।

उड़ै तरंग बनै नहिं बरनत ऐसा आनद छाया।

चौदह लोक की फेरी कीन्हा जैति पत्र को पाया।

अन्त त्यागि तन चढ़ि सिंहासन श्री साकेत सिधाया।८।