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३९२ ॥ श्री सरारात शाह जी ॥ (२)

लड़ाई होगी हमारी तेरी जो नाम में तू न मन लगावै।

आखिर में जमदूत आय पकरैं तू रोवैगी औ हमै रुलावै।

इसी से मुझको है शोक प्यारी जो मानि मेरा सखुन यह जावै।

तो दोनों मिलि कर अजर अमर हों यह मार्ग सुन्दर गुरु बतावै।

धुनि ध्यान नूर लै हो चमाचम सिया राम आकर सन्मुख में छावै।५।

सुर मुनि मिलैं सब बिहंसि लिपट कर फिर नाम महिमा को जस

बजै क्या अनहद बिमल बिमल घट पियै अमी रस न बोलि आवै।

जगैगी नागिन षट चक्र बेधैं कमल भि सातौं खिलैं दिखावैं।

सुगन्धैं निकलैं किसिम किसिम की मगन मनै मन व सर हिलावै।

कहैं बराती तन त्यागि निज पुर चलैं जहां में न फेरि आवैं।१०।