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३८६ ॥ श्री रमजानी शाह ॥

पद:-

लीजै राम नाम की आँड़।

सतगुरु करि सुमिरन बिधि जानो शान्त होय मन भाँड़।

तन के चोर होंय सब चेला संघै चेली रांड़।

सुर शक्ती भोजन हित लावैं रोज़ सुहारी खांड़।

निर्भय औ निर्बैर जाव ह्वै बिजय की बांधौ फाँड़।५।

 

अजर अमर ह्वै घूमौं भक्तों लगै न गरमी जाड़।

उपदेशो जो दीन मिलै कोई वाके दुख हों माड़।

ध्यान प्रकाश समाधि नाम धुनि पापन डारै चांड़।

बिधि कर लेख जाय जियति जियतै कटि सुफ़ल होय तन हांड़।

रमज़ानी कहैं लखौ राम सिया होय न नेकौ हांड़।१०।

 

दोहा:-

सतगुरु से उपदेश ले, बनो नाम के सांड़।

रमजानी कहैं तब कभी, लगै न चोरन कांड़॥