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३७९ ॥ श्री गाज़ी मियां जी ॥ (१५)


पद:-

नेम टेम औ प्रेम भाव में राम रमे रमि जावो तुम।

सतगुरु से जप भेद जानकर सूरति शब्द लगाओ तुम।

ध्यान प्रकाश समाधि नाम धुनि रूप सामने छाओ तुम।

अमृत पिऔ सुनौ घट अनहद सुर मुनि संग बतलाओ तुम।

नागिन जगै चक्र षट बेधैं सातों कमल खिलावो तुम।५।

तर दिमाग़ खुशबू से होवै मुख से क्या कहि पावो तुम।

सबै बासना नाश जाय ह्वै जियतै मुक्त कहावो तुम।

गाज़ी कहैं अन्त तन तजि कै अवध पुरी को जावो तुम।८।