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३७९ ॥ श्री गाज़ी मियां जी ॥ (३)


पद:-

रूप कि छबि लखि नैन सुफ़ल हों नाम कि धुनि सुनि श्रवन सुखारी।

सतगुरु करि जप की बिधि जानो जियतै जीत जाव भव पारी।

सारे चोर किनारे होवैं हर दम भक्तों आनन्द भारी।

सुर मुनि नित हरि चरित सुनावैं संघै कर गहि लें बैठारी।

झारैं अंग दिब्य बसनन ते बिहँसि बिहँसि बोलैं बलिहारी।५।

भाँति भाँति के फूल चढ़ावैं लेंय उठाय उछँग उलारी।

उर लगाय मुख को सब चूमैं जय जय कार करैं दै तारी।

गाज़ी कहैं भयो मुद मंगल तन छूटै साकेत सिधारी।८।


दोहा:-

तन स्वाँसा औ समय यह, मिला बड़ा अनमोल।

गाज़ी कह मन बस करो, बिजय कि बाजै ढोल।

हाट बाट औ घाट पर, भेष बनाये बैठि।

मधुर बचन सब से करैं, जांय हृदय में पैठि।

नीच जाति के ऊंच बनि, करते सदा ठगाय।५।

जो अपना कल्यान चह, इनके पास न जाय।

भीषम जी के बचन यह, कहैं सुना हम तात।

गाज़ी कह हरि भजन बिनु, नर तन धोखा खात।

राम नाम अनमोल धन, बड़ी भाग्य सो पाय।

गाज़ी कह सतगुरु बिना, कौन सकत बतलाय।१०।