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३७७ ॥ श्री गुलज़ार शाह जी ॥

वारिस अली जी हाजी देवैं सरीफ़ के।

जो फना फिल्ला जानिगै बेटे सरीफ़ के।

गुलजार शाह कहते मुरशिद मेरे वही थे।

जिनकी दया से हमहूँ उस राह पर सही थे।

बिसवाँ नगर हाट मगरहिया। पूरब नाके पर हम रहिया।५।

इमली का एक पेड़ पुराना। खोखल वा में एक दिखाना।

वाके तले बास मन माना। जब चाहैं तब बैठक ठाना।

पानी बरसै आंधी आवै तब ओके खोखल में जावैं।

गुलशन तुम्हारा तन है चमनों पै टहलो भाई।

सतगुरु से जानि सुमिरन मन से करो मिताई।१०।

धुनि ध्यान नूर लय हो सब में वही दिखाई।

सुर मुनि मिलैं लिपटि के अनहद सुनो बधाई।

अमृत पियो मगन ह्वै सोता चलत सदाई।

नागिन जहाँ जगैगी सब लोक दे घुमाई।

षट चक्र सोधि नाचैं सातौं कमल फुलाई।

तन त्यागि निज वतन लो गुलज़ार शाह गाई।१६।